नई दिल्ली/रायपुर। छत्तीसगढ़ में पिछले करीब 10 साल से संविदा और अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण का मुद्दा सियासी गलियारों में गूंज रहा है। नियमितीकरण की मांग को लेकर कई बार कर्मचारी आंदोलन भी कर चुके हैं। अगर पिछली भूपेश सरकार की बात करें तो उन्होंने कर्मचारियों से वादा किया था कि सत्ता में आते ही संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाएगा, लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस ने अपना वादा पूरा नहीं किया। लेकिन इस बीच कल सुप्रीम कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के हित में बड़ा फैसला दिया है।
दरअसल गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में विजय कुमार गुप्ता सहित 98 कर्मचारी दैनिक वेतनभोगी के तौर पर कार्यरत थे। ये सभी कर्मचारी विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से करीब 10 साल या उससे अधिक समय से कार्यरत थे। साल 2008 में सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इन सभी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी किया था। जारी आदेश के अनुसार 10 साल या उससे ज्यादा समय तक सेवा चुके कर्मचारियों को नियमित किया जाना था। इस आदेश के परिपालन में उच्च शिक्षा संचालक ने भी 26 अगस्त 2008 को विभाग में कार्यरत ऐसे कर्मियों को स्ववित्तीय योजना के तहत नियमितीकरण और नियमित वेतनमान देने का आदेश दिया। मार्च 2009 तक इन्हें नियमित वेतन भी दिया गया। इसके बाद बिना किसी जानकारी या सूचना दिए यूनिवर्सिटी ने नियमित वेतन देना बंद कर दिया था।
कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उन्हें कलेक्टर दर पर वेतनमान देने का आदेश जारी कर दिया। इसके साथ ही 10 फरवरी 2010 को तत्कालीन रजिस्ट्रार ने 22 सितंबर 2008 को जारी शासन के नियमितीकरण को भी निरस्त कर दिया। रजिस्ट्रार के इस आदेश को चुनौती देते हुए कर्मचारियों ने अधिवक्ता दीपाली पाण्डेय के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि गुरु घासीदास विवि को राज्य सरकार से केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकार किया गया है। लिहाजा, राज्य शासन के अधीन कार्यरत सभी कर्मचारियों को उसी स्थिति में केंद्रीय विश्वविद्यालय में शामिल करना चाहिए, जिस स्थिति में कर्मचारी राज्य विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। लेकिन, यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया।