Sunday, December 22, 2024

Top 5 This Week

Related Posts

News 99 : ‘द वैक्सीन वॉर’ जिंदगी और मौत के बीच की कहानी है…..

News 99 : कोरोना काल के सब्जेक्ट को पिछले कुछ समय में कई राइटर्स व डायरेक्टर ने एक्सप्लोर किया है. मधुर भंडारकर ने जहां लॉकडाउन के शुरूआती दिनों को हाइलाइट कर लोगों के इमोशन को परोसा, तो वहीं अनुभव सिन्हा ने भी भीड़ के जरिए पलायन करने वाले मजदूरों के दर्द को दिखाया था.

News 99 : इसी काल की कहानी को अब विवेक अग्निहोत्री अपने तरीके और स्टाइल से पेश करने जा रहे हैं. पहले बता दें, यह कोई डॉक्यूमेंट्री नहीं है बल्कि प्योर फीचर फिल्म है. विवेक ‘द वैक्सीन वॉर’ के जरिए भारत के साइंटिस्ट्स द्वारा बनाए वैक्सीन की जर्नी को दिखा रहे हैं.

कहानी

News 99 : 2020 से लेकर 2022 तक के टाइम फ्रेम पर यह फिल्म आधारित है. कहानी की शुरुआत 2020 के जनवरी से होती है, जहां चीन के वुहान से आए वायरस की खबर पर ICMR अलर्ट हो जाती है. इंडिया में होने वाले इसके असर की संभावनाओं के आधार पर तैयारी शुरू हो जाती है. कैसे एक साइंटिस्ट्स की टीम मिलकर अपने देश का वैक्सीन तैयार करती है और उस पूरी जर्नी में उन्हें किन-किन मुश्किलातों का सामना करना पड़ता है. मौजूदा सरकार का सपोर्ट, तमाम कंट्रोवर्सीज, कोरोना के बढ़ते केसेज और उससे मरते लोग, तमाम पहलुओं को एक धागे में पिरोने की कोशिश की गई है.

डायरेक्शन

News 99 : विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म के डायरेक्शन और राइटिंग दोनों की कमान संभाली है. यह कहना सही होगा कि द वैक्सीन वॉर के जरिए विवेक का कोरोना के प्रति एक नया अप्रोच है, जो कहानी में फ्रेशनेस सी जगाती है. हमने डॉक्टर्स, मजदूरों के नजरिये से तो तमाम स्टोरीज देखी हैं, लेकिन एक साइंटिस्ट और उनकी तैयारी इस फिल्म को अनोखी बनाती है. वैक्सीन बनने की स्टोरी के साथ-साथ विवेक की यह फिल्म महिला सशक्तिकरण की भी बात करती है और उन तमाम महिला साइंटिस्ट्स के डेडिकेशन को खूबसूरती से दिखाती है, जो अपने फर्ज और फैमिली के बीच फंसे होते हुए भी कमाल कर जाती हैं. भारत के खुद के वैक्सीन अचीवमेंट पर भी बात हुई है. सीन्स के दौरान कई ऐसे हाई पॉइंट्स रहे हैं, जिसे देखकर आप गर्व से भर जाएंगे.

News 99 : अब बात करते हैं फिल्म के उन पहलुओं की जहां विवेक चूकते नजर आए हैं. फिल्म की राइटिंग कसी हुई नहीं लगती है. जिस वजह से फर्स्ट हाफ बहुत ही खींचा हुआ सा महसूस होता है. एडिटिंग टेबल पर इसे और क्रिस्प बनाया जा सकता था. कई सीन्स ऐसे हैं, जहां मौजूदा गर्वनमेंट के ग्लोरीफिकेशन को सटल तरीके से प्रेजेंट किया गया है. फिल्म इतनी टेक्निकल है, इसमें अगर थोड़े लाइट्स मोमंट होते, तो शायद फिल्म से होने वाली बोरियत को कम किया जा सकता था.

News 99 : दिक्कत वहां आती है कि आपने देश के अचीवमेंट पर तो फोकस किया है, लेकिन जब कोरोना के दौरान हेल्थ डिपार्टमेंट का फेल्यॉर था, उसके सीन्स दिखाकर उन पहलुओं को हाइलाइट करते नहीं दिखते हैं. तीसरी जो चूक है, वो है मीडिया का रि-प्रेजेंटेशन, रोहिनी का किरदार एक जर्नलिस्ट कम कैरिकेचर बनकर रह जाता है. पूरी फिल्म में मीडिया को बतौर विलेन प्रेजेंट किया गया है, जिसे डायजस्ट करना थोड़ा मुश्किल लगता है. विवेक फिल्म के जरिए लेफ्ट आइडियोलॉजी रखने वालों पर कटाक्ष करते हुए यह बताने की कोशिश करते हैं कि मीडिया ने कोरोना काल के दौरान केवल निगेटिव खबरों को ही हाइलाइट किया है, कभी भारत के वैक्सीन अचीवमेंट पर फोकस ही नहीं किया गया.

एक्टिंग

News 99 : कहते हैं फिल्म की कास्टिंग अगर बेहतरीन हो, तो डायरेक्टर आधी जंग वहीं जीत जाता है. डॉ भार्गव के रूप में नाना पाटेकर को चुनना मेकर्स का बेहतरीन फैसला रहा. नाना ने अपनी सशक्त एक्टिंग से इस किरदार में जान फूंक दी है. कई सीन्स ऐसे हैं, जहां नाना एक्टर के तौर पर रील्स और रियल की लाइन को ब्लर करते नजर आते हैं. वहीं डॉ के किरदार में पल्लवी का काम भी टक्कर का रहा. पल्लवी ने साउथ इंडियन लहजे को बखूबी पकड़ा था. हालांकि कुछ सीन्स में वो कंसीस्टेंसी बरकरार करती नहीं दिखती हैं. साइंटिस्ट के किरदार में गिरीजा ओक, निवेदिता भट्टाचार्या का काम कमाल का रहा. हर फ्रेम में वो बेहद सहज लगी हैं. इमोशन के ग्राफ को भी इन दोनों एक्टर्स ने बखूबी पकड़ा है. जर्नलिस्ट के किरदार में राइमा सेन का काम डिसेंट रहा. उनके किरदार को जितना स्ट्रॉन्ग लिखा गया था, वो उस इमोशन को पर्दे पर लाने में नाकाम लगती हैं. अनुपम खेर एक गेस्ट अपीयरेंस के रूप में फिल्म में जब-जब आते हैं, अपना काम सहजता से कर जाते हैं.

 

Popular Articles