News 99 रायगढ़। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 3 महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की थी. जिसमें नरवा, घुरवा, बाड़ी और गरवा योजना शामिल थी. इस योजना के तहत नहर, बाड़ी, घुरवा और गरवा यानी गायों के संरक्षण के लिए काम करने की योजना तैयार की गई थी. सड़कों पर आवारा घूमती गायें दुर्घटना का शिकार न हो और वह खेतों में फसलों को नुकसान न पहुचाए इसके लिए सरकार ने ‘रोका छेका अभियान’ शुरू किया था। लेकिन हकीकत यह है कि एक तरफ जहां मवेशियों के बने गोठान विरान पड़ है वहीं दूसरी ओर पुल पुलिया में मवेशियों का जमावड़ा देखा जा रहा है।
जनपद पंचायत पुसौर के अंतर्गत आने वाला ग्राम पंचायत गढ़उमरिया के आश्रित ग्राम बोदा टिकरा का पुल गोठान में तब्दील है यहां दिनभर 40 से 50 गायों का जमावड़ा रहता है यह पुल अस्थाई रूप से गौठान बन चुका है जहां एक ओर ग्रामीण क्षेत्रों मे लाखों रुपए खर्च कर गौठान बनाने के बाद भी मवेशी नहीं पहुंच रहे हैं जबकि अब खेतों में धान बोआई अंतिम चरण में है। कुछ खेतों में धान के पौधे भी आ गए हैं और मवेशी उसे नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन इस ओर गौठान समिति व जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है।
जब रोका छेका अभियान शुरू किया तो बड़े जोर-शोर से इस योजना के प्रचार-प्रसार में लाखों रूपये खर्च किए गये। सरकार ने इसे शुरू करने से पहले अनगिनत फायदे बताये थे, जो अब फ्लाप साबित होते दिख रहे है। ऐसा ही एक नजारा ग्राम पंचायत में दिख रहा है। यहाँ रोका-छेका अभियान पूरी तरह फ्लाप दिख रहा है। गाव के प्रमुख चैक-चैराहों, सहित सभी जगह पर आवारा मवेशी खुलेआम घुम रहे है और लोग इससे दुर्घटना का कारण बन रहे है। वही ग्रामीण अंचल में हालात यह है कि गौठान सुनसान पड़े है और पशु पालक अपने जानवरों को खुले में चरने के लिए भेज रहे है। क्षेत्र में कई स्थानों पर लाखों रूपये खर्चकर गौठान बनाए गए है लेकिन इन गौठानों में न तो चारा की व्यवस्था है और न ही मवेशियों के लिए पानी की व्यवस्था है। गौठान का कार्य सिर्फ कागजों में ही सीमित है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सरकार की रोका छेका योजना को सफल बनाने में ग्राम पंचायत रुचि लेते नहीं दिख रही है। कांग्रेस सरकार की यह महत्वकांक्षी योजना भी फ्लाप साबित होते दिख रही है। गढ़उमरिया ग्राम पंचायत का आश्रित ग्राम बोदार्टिकरा में आज भी मुख्य मार्ग पर पुल के ऊपर मवेशी डेरा डाले हुए है। पुल के ऊपर मुख्य मार्ग पर मवेशी एक सीध मे रोड़ को घेरकर खड़े हुए दिखाई दिए। इससे कभी भी दुर्घटना घट सकती है, और कहीं-कहीं पर मवेशी दुर्घटना के शिकार भी हो रहे है। यह मवेशी पुल के बीचो बीच मुख्य मार्ग पर अपना कब्जा जमाए हुए बैठे रहते है। इन मवेशियों की देखरेख करने वाला कोई नहीं है। वही दूसरी ओर गांव-गांव में सरकार द्वारा गौठान बनाए गए है, किन्तु अधिकतर ग्राम पंचायतों में मवेशियों को रोका नहीं जा रहा है। जिन गांवों में गोठान बन भी गए है, वहाँ चारा एवं पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है तथा चरवाहे की नियुक्ति भी नहीं की गई है। इससे भी समस्या बनी हुई है।
मवेशी मालिक गाय बैल भैंस को खुला छोड़ दिए है, जिससे किसानों की खेती को नुकसान पहुंचा रहे है। ग्रामीण अंचल में खेतों में धान बोवाई का काम चल रहा है। धान भी अंकुरित होकर निकल रहे है, ऐसे में मवेशियों को खुला छोड़ देने से धान की फसल को नुकसान पहुंचा रहे है। किसान मवेशियों को अपने-अपने खेतो से हटाते हटाते परेशान हो गए हैं।
‘रोका-छेका अभियान’,अभियान के तहत सड़कों पर घूमने वाले आवारा मवेशियों को पकड़कर गौठान में रखने और उनके खाने-पीने की व्यवस्था की गई थी. अब यह योजना दम तोड़ती नजर आने लगी. अब इस अभियान के तहत न तो गायों को सड़कों से हटाया जा रहा है और न उन्हें गौठानों में रखा जा रहा. जो गायें गौठानों में हैं, उनके खाने की व्यवस्था नहीं की जा रही है. जिसके कारण अब आवारा मवेशी सड़कों पर दिखाई देने लगे हैं।
शहर से बाहर जाने वाली सड़कों पर ज्यादातर दुर्घटनाएं आवारा मवेशियों की वजह से ही होती है. शहर के बाहर तो दूर यह योजना शहर के भीतर भी दम तोड़ चुकी है. यही कारण है कि शहर के मुख्य मार्गों पर आवारा मवेशियों का कब्जा रहता है और वे दुर्घटना का कारण बनते हैं।